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शिव स्तुति

नवीन कुमार झा
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 आश्चर्यम् खल्लवेक मेव रचना दृष्टा तु कौतुहलम् 

शीर्षाचाष्ट पदाष्ट जिव्हा नवकम् वत्राष्ट उक्षिद्वयम 

विंगशत एक प्रमाण नेत्र विशतं वेद प्रमाणं भुजा 

स्रोतं चैव चतुर्दशम च शततम कुर्यात सदा मंगलम

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