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सुख़ -दुःख के भाव से परे हो जाता हैं

नवीन कुमार झा
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     न जीयते चानुजिगीषतेऽन्यान्

         न वैरकृच्चाप्रतिघातकश्च ।                                                   निन्दाप्रशंसासु तमस्वभावो न

         शोचते ह्रष्यति नैव चायम् ॥


  भावार्थ -- *जो व्यक्ति न तो किसी को जीतता है, न कोई उसे जीत पाता है्; न किसी से दुश्मनी करता है, न किसी को चोट पहुँचाता है; बुराई और बड़ाई में जो तटस्थ रहता है; वह सुख़ -दुःख के भाव से परे हो जाता है।*


               

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