न जीयते चानुजिगीषतेऽन्यान्
न वैरकृच्चाप्रतिघातकश्च । निन्दाप्रशंसासु तमस्वभावो न
शोचते ह्रष्यति नैव चायम् ॥
भावार्थ -- *जो व्यक्ति न तो किसी को जीतता है, न कोई उसे जीत पाता है्; न किसी से दुश्मनी करता है, न किसी को चोट पहुँचाता है; बुराई और बड़ाई में जो तटस्थ रहता है; वह सुख़ -दुःख के भाव से परे हो जाता है।*